नारी वह बिदूसी - कविता - बुद्धदेव बाघ

वो अबला नहीं सबला है 
नारी दुर्गा अब्तारी है 
जंजीर  तोड़के बंधन के 
इतिहास की अनसुनी गाथा है...

झांसी की वह लक्ष्मी  बाई है 
शेरनी दुर्गावती वीर  है 
सम्मान की प्रतिमा है वो 
चित्तौड़ की रानी पद्मावती है...

वो राधा है वो मीरा है 
अमर प्रेम की भावना है 
बदनाम करते उसे तुम 
सदभावना की वो मूरत है...

जीवन का आधार है 
धरा है वो गगन है 
खुदको मर्द समझने वाले 
बो तुम्हे जन्म देती मा है...

ना  हारी  ना कभी झुकी है
ना थकी ना कभी रुकी है 
मा भारती की बेटी है वो 
अतुलित बलधारी साहसी है...

बुद्धदेव बाघ - कटक (ओडिशा)

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