मनुष्यता - कविता - मधुस्मिता सेनापति

दो ही शब्द काफी है
इस विश्व भर में
हृदय में हो प्यार
मनुष्य का मनुष्य से……!!

मनुष्य हम बने
यह हम सभी का लक्ष्य हो
मनुष्य के लिए
मनुष्य कभी भख्य न हो……!!

जाति धर्म से दूर हम रहेंगे
राम हो या रहीम
सभी को ह्रदय में
जगह देते रहेंगे…….!!

धर्म से नहीं हम पहचानेंगे
न जाति से हम पहचानेंगे
भाषा  हो कुछ भी
मनुष्य को मनुष्यता से ही जानेंगे….!!

मनुष्यता होगा धर्म हमारा
भेद-भाव न होगा दोबारा 
स्नेह, प्रेम होगा मन में हमारा
मैत्री के भाव से
भरा होगा यह जहान सारा……!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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