बचपन में जाने को जी चाहता हैं - कविता - शेखर कुमार रंजन

बचपन में जाने को जी चाहता हैं,
हुई जो गलतियाँ बचपन में मुझसे
उसे जा सुधारने को जी चाहता हैं    
लिपटा रहता मैं माँ की आँचल में,
फिर से लिपटने को जी चाहता है
खिलाती रही वो अपनी हाथों से,
फिर वैसे खाने को जी चाहता है
संग दोस्तों के खेलता रहा मैं जैसे, 
फिर से खेलने को जी चाहता है
बेसुरे आवाजों में गाता रहा मैं,
वैसे फिर से गाने को जी चाहता है
खिलखिला कर हँसता था जैसे,
वैसे फिर हँसने को जी चाहता है
बचपन में जाने को जी चाहता है।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos