रिश्तों मे सबसे बड़ी पूँजी है विश्वास - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

कोई भी रिश्ता प्रेम और विश्वास इन दो पहियों पर चलता है ,एक भी पहिया डगमगाया तो रिश्ते का पतन तय है ।
रिश्ता ऐसा हो कि शब्दों की जरूरत ना पड़े।
रिश्तो की लम्बी बागडोर में सारे रिश्ते पिरोए होते हैं, अगर विश्वास रूपी  धागा टूट जाए तो रिश्ते बिखरने में देर नहीं लगती।
इसी सिलसिले में मेरी एक नज़्म है,
संबंध की संजीदगी में,
मासूमियत ही नूर लाती। होशियारी की अधिकता,
ख़ाक़ में रिश्ते मिलाती।
अगर रिश्ते को सहेज कर रखना है तो अपना विश्वास सुदृढ़ बनाएं।
आज के दौर में दो तरह के रिश्तो की धारा बह रही है एक असंतुष्ट दूसरी अशांत।
कहीं संसाधनों को जुटाने में रिश्ते दाँव पर लग रहे हैं तो कहीं विश्वास के अभाव में रिश्तो की बलि चढ़ रही है।
जब रिश्तोमें आपस में कोई बातचीत नहीं होती तो समझो रिश्तो के मध्य कोई अनदेखी दीवार खड़ी है और यहीं से प्रेम के कम होने और भरोसे के डिगने का काम शुरू होता है, क्योंकि रिश्तो को सदैव प्रेम से अभिसिंचित करना चाहिए।
रिश्तो का गाम्भीर्य  और माधुर्य  का आकलन भावों को देखकर भी महसूस किया जा सकता है। बस नजर पारखी होनी चाहिए।
रामचरितमानस में राम सीता का दांपत्य ऐसा ही था न शब्द थे ना कोई बात ,बस भाव से ही एक दूसरे को समझ जाते थे।
वनवास में जब राम सीता और लक्ष्मण को केवट ने गंगा के पार उतारा तो राम के पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था  वे इधर उधर देख रहे थे।

तुलसीदासजी ने लिखा है
पिय हिय की सिया जान निहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी । अर्थात सीता ने बिना राम के कहे उनके हाव भाव देखकर समझ लिया कि केवट को देने के लिए वे इधर उधर देख रहे हैं और सीताजी ने अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर दे दी ।
रिश्तो में प्रेम ऐसा हो कि शब्दों के बगैर भी बात हो जाए, वही रिश्ता सफल है और सुखी भी।
रिश्ते हमारी संपत्ति हैं और जिम्मेदारी भी।
रिश्ते कमाने पड़ते हैं, निभाने पड़ते हैं।

विश्वास और प्रेम के जरिए  अर्जित किये जाते हैं रिश्ते।
इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी चाहिए।
जो इसका मूल्य समझ जाए वह संसार को समझ जाएगा।
कर्तव्य और हमारे बीच की एक डोर से परिवार और रिश्ते भी होते हैं, परमात्मा ने हमें इन को सहेजने की जिम्मेदारी दी है। हर आदमी इसी बोझ से झुका होता है और यही आवश्यक भी है। 

कमजोर आदमी तो टूटकर रिश्तो की मर्यादा ही भूल जाता है। परंतु रिश्ते जिस विश्वास की डोर में घुसे थे वह माला इसीलिए टूट जाती है रिश्तो में  जब तक विश्वास होता है तभी तक जीवित रहते हैं। विश्वास खत्म रिश्ता खत्म। रिश्ते जब व्यावसायिक हो जाते है तो टूटते देर नही लगती।
अतःरिश्तो की डोर भी परमात्मा के हाथों में सौपनी चाहिए।
अतः रिश्तों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के भाव को गंभीरता से समझना चाहिए।
रिश्तो में सुख और आनंद की प्राप्ति तभी होती है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी निभाते हैं, तथा प्रेम के धागे में विश्वास के मोती पिरो कर माला को धारण करते हैं तब रिश्तों की डोर कोई नही तोड़ सकता।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos