माँ याद बहुत ही आती हो - कविता - शेखर कुमार रंजन

यह कविता अपनी माँ से दूर रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों के दर्द को बयां करती हैं जो उनकी माँ को समर्पित किया जाता है। जब बच्चें पहली बार शहर जाकर पढ़ते हैं और पहली बार माँ से दूर रहते है।

सच कहता हूँ माँ मुझेको,
तू याद बहुत ही आती हो
सुबह न आती शाम न आती,
सपनों में तू आती हो।

धीरे धीरे माँ मुझको,
तू बेटा कहकर जगती हो
आँख खोलता जब मैं माँ, 
तुम कहाँ छुप जाती हो।

विकल होकर तुम्हें ढूंढ़ता,
जब तुम न मिल पाती हो
आँख में अश्रु धारा है माँ,
फिर भी क्यों? नहीं आती हो।

सच कहता हूँ माँ मुझको,
तू याद बहुत ही आती हो
माँ अपनी हाथों से मुझको,
तू खिलाया करती थी।

बस माँ तू यहीं कहती थी,
एक निवाला और सही
नहीं-नहीं कहने पर भी जब,
तू डांटकर खिलाया करती थी।

वो सारी पुरानी बातें,
याद मुझे आ जाती हैं
सच कहता हूँ माँ मुझको,
तू याद बहुत ही आती हो।

बेटा बड़े होकर तुम पढ़ने,
माँ से चले जाओगे दूर कहीं
वो सारी कही पुरानी बातें, 
याद मुझे आ जाती है।

सच कहता हूँ माँ मुझको, 
तू याद बहुत ही आती हो।


शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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