कोरोना इंसान को बदल दिया - कविता - मधुस्मिता सेनापति

घुटन होने लगी है, उन लोगों को,
इस केद से, जो एक दिन कहते थे,
लड़कियों को ही घर में रहनी चाहिए...

आज मास्क लगा लगा कर थक गए वह लोग,
जो एक दिन कहते थे,
लड़कियों को ही नकाब में रहनी चाहिए...

आज संयुक्त परिवार में रहने के लिए,
मजबूर हो गए वह लोग,
जिन्हें एक दिन लगता था,
बूढ़े मां- बाप हो गए आज पुराने...

कोरोना की मौत से, आज डरने लगे हैं वह लोग
जो एक दिन के कहते थे,
पैदा ही क्यों हुए?
इससे तो अच्छा कि हम मर ही जाते...

अकेलेपन अच्छा नहीं लग रहा है अब,
उन लोगों को जो एक दिन कहा करते थे,
थक गए इस दुनिया में हम,
अब कुछ पल अकेले जीना चाहते हैं...

पसंद नहीं था जिन को घर का खाना,
था वह दिन खाते थे वह होटलों में,
आज खा रहे हैं वह घर का खाना,
रह रहे हैं वह अब आत्म संतोष में...

जब खाना बने घर में,
हम रहेंगे स्वस्थ और तंदुरुस्त में...

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos