जीवन के सफर में - कविता - मधुस्मिता सेनापति

जब हम चलना शुरू करते हैं,
तो दिक्कतें आती रहती है,
अगर हम चलना जारी रखें,
तो धीरे धीरे मंज़िल नजर आने लगती है...

अगर हम रुक जाएं,
तो अलग बात है
बरना मंजिल तो वहीं रहते है....

खुद तक पहुंचने की कोई सर्त नहीं है,
बेहतर बनने की यांहा कोई हद  नहीं है,
अगर चलना जारी रखे,
तो धीरे धीरे मंज़िल नजर आने लगती है...

इन मेहफिलो में हम भी बस तन्हाई में रहते है,
इन खबर ना मंजिल की मुसाफिर अक्सर अकेले रहते हैं,
अगर हम रुक जाएं, तो अलग बात है,
बरना मंजिल तो वहीं रहती है......

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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