असमानता का चश्मा - कविता - अतुल पाठक

असमानता का चश्मा जब तक 
अपनी समझ से न हटा पाओगे
तब तक न अपने समाज को सुंदर
और न देश को मेरा भारत महान बना पाओगे
जहाँ बेटियों और महिलाओं को 
समान दर्जा न दिला पाओगे
वहाँ कभी सशक्त समाज की 
कल्पना भी न कर पाओगे
आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं
पुरुषों से कतई कमतर नहीं 
फिर भी अगर बेटियों को 
आगे बढ़ने का अवसर न दे पाओगे
तो याद रखना समाज में कभी
सही मायने में विकास न कर पाओगे

अतुल पाठक - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)

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