महाकवि संत तुलसीदासः व्यक्तित्व और कर्तृत्व - आलेख - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

हिन्दी साहित्यकाश का कविकुलकुमुद कलाधर कविवरेण्य 
महाकवि गोस्वामी संत तुलसीदास जाज्वल्यमान भास्कर हैं। वे न केवल एक महान् सन्त और भक्ति सागर स्वरूप थे ,अपितु वे लोकमंगल के जन मन सुखदायक समाज सुधारक,दार्शनिक,  क्रान्तिकारी प्रचेता और चालीस काव्यग्रन्थों का महान् युगान्तकारी कालजयी रचनाकार हैं। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन कवियों में पुरोधा, गौरवशिखर और श्रीराम भक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तक महाकवि माने जाते हैं। वे चतुर्वेदों,आरण्यक,ब्राह्मण ग्रन्थों ,वेदांगो, वेदान्तशास्त्रों , रामायण , महाभारत, समस्त नीति धर्मशास्त्रों ,काव्यशास्त्रों के महान् अध्येता और सकल साधनात्मक मतों ,अध्यात्मिक एवं प्राकृतिक देवी देवताओं के मध्य मानवीय तारतम्यता और समन्वयवाद को अपने साहित्य सागर में कूट कूट कर पिरोया है।
संत तुलसीदास जी का जन्म उत्तरप्रदेश के बाँदा मण्डलान्तर्गत राजापुर नामक गाँव में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में सन् १५३२ई. में हुआ। उनके पिता का नाम श्री आत्माराम दूबे और माता  का नाम हुलसी था। मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण अशुभ मानकर माता पिता ने उन्हें जन्म लेते ही त्याग दिया। अतएव उन्हें अपना बाल्यकाल का प्रारम्भिक अवधि भिक्षाटन करके बिताना पड़ा। कुछ कालान्तर के बाद उस भटकते बालक को बाबा हरिहर दास जी शरण दिया, पाला,पोषा, और अपना शिष्यत्व प्रदान कर उन्हें समुचित शास्त्रों की शिक्षा दीक्षा प्रदान किया। 
गोस्वामी जी का परिणय संस्कार श्री दीनबन्धु पाठक जी की सुपुत्री रत्नावली के साथ हुआ। पत्नी के प्रति अतीव अनुराग के कारण एकबार तुलसीदास जी पत्नी के साथ उनके मैके तक पहुँच गये जिससे उनकी पत्नी बहुत 
क्रोधित हुई और फटकारती हुई बोली --- 
" लाज न आवत आपको ,दौरे आयहु साथ।
  धिक्    धिक्  ऐसे  प्रेम को , कहौं मैं नाथ।।
  अस्ति चर्ममय देहसम , तामैं   ऐसी  प्रीति। 
  ऐसी   जो   श्रीराम में होति, न  भव भीति।।" 
धर्मपत्नी की डाँट से विचलित भार्या प्रेमासक्ति से विरक्त 
तुलसीदास का जीवन एकदम परिवर्तित हो गया जो उन्हें 
महानतम रामभक्ति का प्रचेतस सह महान् सन्त महाकवि के रूप में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने अपना जीवन माँ सरस्वती की अनुपम कठिनतर साधना में अर्पित कर दिया। इस क्रम में वे कभी चित्रकूट ,कभी अयोध्या और कभी काशी में रहकर साधना करने लगे। रामभक्ति शाखा की दीक्षा उन्होंने स्वामी रमानंद जी के गुरुत्व में ग्रहण की। उन्होंने रमानंद जी जैसे गुरुकृपा से अनेकों कालजयी सारस्वत काव्यों की श्री रचना की। वे भुजंग सम खूब इतस्ततः भ्रमण किया। रामचरितमानस जैसे  कालजयी रामभक्ति परिपूत महाकाव्य की रचना करनेवाले महाकवि तुलसीदास जी ने सन् १६२३ई. ( संवत् १६८० वि.)में काशी के असि घाट पर निर्वाण प्राप्त किया --
" संवत् सोलह सौ असी ,असि   गंग के तीर।
  श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी तजौ शरीर।।" 
 तुलसी साहित्यिक कर्तृत्व और व्यक्तित्व: गोस्वामी श्री तुलसीदास के द्वारा विरचित ४० काव्यों की रचना की गई,परन्तु
अबतक उनकी १२ प्रमाणिक रचनाएँ ही उपलब्ध होती हैं जो इसप्रकार हैं --- १. रामलला नहछू २. वैराग्य संदीपनी ३. बरवै रामायण ४. रामचरितमानस ५. पार्वती मंगल ६. जानकी मंगल 
७. रामाज्ञा प्रश्नावली ८. दोहावली ९. कवितावली १०. गीतावली 
११. श्रीकृष्ण गीतावली १२. विनय पत्रिका । 
किन्तु गोस्वामी तुलसीदास की युग युगान्तर जनमन चित्तभावन कीर्ति पताका उत्तमोत्तम  महाकाव्य श्री रामचरितमानस ही है जो सम्पूर्ण मानव दर्शन ही है। हिन्दी साहित्य ही क्या ,सम्पूर्ण विश्व साहित्य में ऐसा अद्वितीय  लोकमानसमंगल का काव्य दुर्लभ है। कवितावली ,गीतावली ,श्रीकृष्ण गीतावली जैसे काव्य सृजन उनकी सरस सरल और सुबोधगम्य सुन्दरतस रचना कुसुम मानी जाती हैं। विनयपत्रिका की भक्तिपूरक पदरचना उन्हें उच्चकोटि के दार्शनिक कवि के रूप में प्रस्तुत करती है। 
दोहावली सूक्तिकाव्य का अनमोल हीरक है। ठेठ ग्रामीण अवधी भाषा में निर्मित " रामलला नहछू " और " बरवै रामायण" जैसे काव्य  रचना तुलसीदास के ग्रामीण कवित्व की नैपुण्यता में चार चाँद लगाती हैं। 
महाकवि तुलसीदास की भक्ति भाव साधना लोकमंगलकारी और परमार्थदर्शी चेतना का प्रतीमानक है। अतः वे जन मन के महाचिन्तक महान् लोकनायक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक सर्वश्रेष्ठ कवि रुप में आसीन हैं। तुलसीदास की समस्त रचनाएँ समग्र मानव जाति के कल्याण ,सुख, अस्मिता और त्याग न्याय पूर्ण समरसता से परिपूर्ण हैं । विशेषकर रामचरितमानस तो वैदिक सनातन हिन्दू धर्माधारित समुदाय और अखिल भारतीय समाज को रामभक्ति और प्रेम के सागर में डूबो दिया है। तुलसी के राम  सगुण और निर्गुण भक्तिधारा के समन्वय के रूप में प्रतिपादित किये गये हैं। अतःत्याग ,शील ,गुण ,कर्म ,शक्ति ,न्याय ,करुणा, ममता ,दया ,नीति और मानवीय अन्तर्मन सह बाह्य प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूरित तुलसी के आराध्य और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम हैं। इसप्रकार भारतीय मानवीय संवेदनाओं ,आदर्शवाद , यथार्थवाद ,प्रगतिवाद , और ईश्वरीय एकात्मवाद के विशाल भावों से परिपूरित रामचरितमानस महाकाव्य भक्ति,शक्ति और परस्पर सौहार्द्र स्नेह सरिता में सराबोर समन्वयवादी दृष्टि का परिचायक है। भगवान् राम को परमात्म स्वरूप  अपने आराध्यदेव के रूप में माना और चातक को अपना आदर्श बनाया -- 

" एक भरोसो एक बल , एक  आस बिश्वास।
  एक राम घनस्याम हित,चातक तुलसीदास।।" 

तुलसीलास कलापक्ष के महान् शृङ्गारक हैं। काव्यशास्त्र के महान् ज्ञाता तुलसीदास समस्त काव्य शैलियों के सफल 
कलाकार हैं। प्रबन्धकाव्य और मुक्तक - दोनों ही विधाओं में महाकवि तुलसी की कोई सानी नहीं है। " रामचरितमानस"
प्रबन्ध काव्यात्मकता का चूड़ान्त निर्दशन है। यद्यपि कवितावली ,जानकी मंगल और पार्वती मंगल आदि काव्य रचनाएँ भी प्रबन्ध काव्य शैली का सुन्दरतम रचना मानी गई है। परन्तु रामचरित मानस संसार का सर्वोत्कृष्ट प्रबन्धात्मक महाकाव्य है। विनयपत्रिका ,दोहावली ,विनयपत्रिका आदि 
काव्यरचनाएँ मुक्तक काव्य विधा का चारुतम उत्कृष्ट उदाहरण हैं जो अन्यत्र दुर्लभ है। तुलसी दास जी अलंकार संसार के अनुपम जौहरी हैं। उन्होंने सांगरूपक ,उपमा ,उत्प्रेक्षा और व्यतिरेक आदि अलंकारों का  अद्भुत मनोरम वर्णन अपने महाकाव्यों में किया है। सांगरूपक का चारुतम प्रयोग यहाँ अवलोकनीय है --- 
   " उदित उदय गिरि मंच पर , रघुवर बाल पतंग।
     बिक से   संत सरोज सम , हरषे  लोचन भृंग।।" 
अनुप्रास अलंकार की प्रयोग- भंगिमा मन को रोमांचित 
कर देती है --- 
     तुलसी असमय की सखा , धीरज धरम बिबेक।
     साहित   साहस  सत्यब्रत , राम  भरोसो   एक।। 

गोस्वामी जी के काव्य रचनाओं में नवरस  संसार समाहित है।रामचरितमानस भक्ति ,वीर ,शृंगार ,करुण , वात्सल्य , वीभत्स ,शान्त , अद्भुत ,भयानक ,रौद्र और हास्य आदि नवरसों का सप्तसिन्धु बन अतिशय उदात्त ,अतुलनीय , गहनतम और आत्मविभोर कर देने वाली विश्व की सर्वोत्कृष्ट रचना है। शृंगार रस का अतुलनीय महाकवि तुलसी की यह पंक्ति अवलोकनीय है --- 
"देखि देखि रघुवीर तन , उर मानस धरि धीर।
 भरे विलोचन  प्रेमजल ,पुलकावलि    शरीर।।" 
वीर रस के गोस्वामी  जी  बड़े हस्ताक्षर हैं , प्रस्तुत पद 
दर्शनीय है --- 
"जौ हैं अब अनुसासन पावौं,
तो चंद्र महिं निचोरि जैल ज्यों,
आनि सुधा सिर नावौं"। 
रामचरितमानस मुख्यतः शान्तिरस का महाकाव्य है जिसमें संसार के कल्याण और शान्ति स्थापन के लिए मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम का अवतरण हुआ है। शान्ति रस की अनुपम छटा अवलोकनीय है --- 
 " अब लौ नसानी ,अब न नसैहों।" 
वस्तुतः गोस्वामी संत महाकवि तुलसीदास  हिन्दी साहित्य ही नहीं ,अपितु समस्त भारत वर्ष के मानसपटल में भक्ति और प्रेमसंचारक चिन्तक नायक सर्वोच्च कवि हैं। रामभक्ति की जो अविरल मोक्षदायिनी पावन धारा जन मन में उन्होंने प्रवाहित की है, उसमें अवगाहन कर समस्त सनातनधर्मी सहृदय भक्तों को समरसता के एक चारुतम एकता के सूत्र में आजतक बाँधती रही है। वस्तुतः महाकवि तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के सूर्य हैं जिनके अरुणिम काव्य प्रकाश के बिना हिन्दी साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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