मुझे दिखती हैं तू ही तू
मेरा रास्ता तू ही है
मेरी मंजिल तू ही है
ऐसा मुझे क्यू लगे
तू ही बता ए दिलरूबा
ए जन्नत की मल्लिका
परियों की रानी
इतना तू बता है क्यू खफा
तू है खफा तो दुनिया खफा
तेरी हँसी पर दुनिया है टिकी
ए जाने जा ए जाने जा
क्यू हो गई तू मुझसे जुदा
तेरा यू हँसना , तेरा मुस्कुराना
ना जाने मुझे क्यू याद आती है इतना बता ए जानेमन
सपनों में भी क्यू सताती है
मुझे वह सुबह याद आ रही है जिस दिन सुबह तुम विकल रो रही थी
किसी के भी मुख पर नहीं थी हँसी
सभी हो गये थे गम में शरीक
वो पल कैसा था , वो पल कैसा था
जुदा जो हुए हम वो कल कैसा था
चली तू गयी अकल कैसा था ।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)