फिर ढलेगी रात काली, सुकूँ से होगी गुज़र - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

फिर अमन की शाम होगी ,
अमन की  होगी  सहर ।

फिर चमन गुलज़ार होंगे ,
खुशबुओं से तर ब तर ।

फिर वतन  आबाद होगा,
भाग  जायेगा  कहर ।

अमन  होगा चैन होगा ,
वतन  में आठों  पहर ।

गीत गाती हरित फसलें ,
फिर मिलेंगी  खेत पर।

तितलियाँ फिर नृत्य करती,
गुलसितां  पेशे नज़र ।

बालकों की  टोलियां ,
फिर से मिलेंगी खेल पर।

फिर लगेंगे क्लास सारे ,
फिर न होगा जेल घर ।

फिर ढलेगी रात काली ,
सुकूँ से होगी  गुज़र ।

चमन जैसा खिल उठेगा ,
वतन का साजो शज़र । 

फिर अमन की शाम होगी ,
अमन की होगी  सहर ।

फिर चमन गुलजार होंगे ,
खुशबुओं से तर ब तर ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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