कोरोना ने लोगों को बदल कर रख दिया है जबरदस्त परिवर्तन लाया है ये कोरोना।
शायद कुदरत वर्तमान मानवीय प्रणाली को कुछ सिखाना चाह रही है। बहु भृमित हो चुकी मानवीय सभ्यता को,सुधार की राह पर लाना चाह रही है। "कोरोना" अपने आप मे अनोखा है, मात्र एक वायरस ने देशो की सीमाएं तोड़ पूरा एक वैश्विक आकार ले लिया है। अब तो आपसी युद्ध और नफरत इस समय लगभग समाप्त है। इस वक्त न मिसाइलों की जरूरत है, न तोपो की। जरूरत है तो सिर्फ इंजेक्सन की, थर्मा मीटर की।
अब तो कही धार्मिक उन्माद भी नजर नही आता, मंदिर मस्जिद के झगड़े लगभग खत्म हैं। इस समय जाति पात के झगड़े थम चुके हैं।
अब तो लोग परम पिता परमेश्वर को मंदिर , मस्जिद चर्च और गुरुद्वारों मे खोजने के बजाय अपने अपने हृदय मे खोज प्रार्थना करने मे लगे हैं। खासा आध्यात्मिक हो चले हैं ।
आधुनिक समाज मे फैली अनैतिक सम्बन्धो की बाढ़ लगभग थम चुकी है , मांसाहार भी अब बन्द है। अब नयी सभ्यता का आलिंगन , चुंबन बन्द होकर प्राचीन मर्यादित प्रणाली "नमस्ते" पूरे विश्व की सभ्यता बन रही है। पूरे मानव समाज ने अनुसाशन मे रहना सीख लिया है।
इस समय अमीर गरीब , सुन्दर कुरूप, अज्ञान विद्वान एवं राजा रंक का भेद भी पूरी तरह इस "कोरोना" ने मिटा रखा है क्योंकि इस वायरस की नजर मे सब बराबर हैं केवल मानव है केवल मानव शरीर।
बेगानो की भीड़ मे खोया आधुनिक मानव समाज अपने अपने परिवारों मे वापस लौट चुका है ।
विदेश प्रेमियों को अचानक स्वदेश से प्रेम उतपन्न हो गया है सभी अपने वतन का रुख कर रहे हैं।
यही आज का कठोर सत्य है, मैं भी इस वैश्विक जनसमूह का अति सूक्ष्म हिस्सा हूँ। कोरोना के बहाने, लॉक डाउन के बहाने लोग खासा अनुशाषित हो चुके हैं। मेरी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह सभी के गुनाह माफ़ कर "कोरोना" नामक कुदरती प्रकोप से रक्षा करें।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)