नास्तिकों की भावनाएं - लेख - पम्मी कुमारी

आस्तिक लोग बात-बात में कहते रहते हैं कि हमारी भावना आहत हुई। कोई फिल्म बनी तो भावना आहत हुई। किसी ने किताब लिखी तो भावना आहत हुई। किसी का नाम पार्वती खान है तो भावना आहत हुई। ऐसी कैसी है आपकी भावना जो बात-बात में आहत होती रहती है?
भावनाएं तो नास्तिक की भी होती है। हमारी भावनाएं भी आहत होती है। जब किसी मंदिर में किसी नारी को देवदासी बनाकर उसका आजीवन शोषण किया जाता है तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। 

आस्था के नाम पर दूध और घी जैसे कीमती द्रव्यों का व्यय होता है और मंदिर के बाहर भूखे बच्चें भीख मांग रहे हैं और भगवान को 56 भोग लगाएं जाते हैं तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। 

संविधान में बताये गये सिद्धांतों के विरुद्ध आप अंधविश्वास को बढ़ावा देते हो और सांसद की उम्मीदवारी का फॉर्म भरते वक्त घड़ी में 11.30 के समय का मुहूर्त देखते हो तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। 

रथ यात्रा हो या कॉवड़ यात्रा आप रोड पर चक्का जाम कर देते हो तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। माईक पर धार्मिक ध्वनि प्रदूषण से हम परेशान हैं लेकिन आपको किसी की फिक्र नहीं है। भावनाएं हमारी भी है और आहत भी होती है। 

जब आप कलेक्टर, डॉक्टर या इंजीनियर बनकर अनपढ़ पंडित से पूछते हो कि शादी का सही समय (मुहूर्त)  क्या है तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। 
शहर में हजारों लोग फुटपाथ पर सोते है और आप नये मंदिर के लिए जमीन का दुरूपयोग करते हैं। स्कूल और अस्पताल बनाने के लिए जमीन और पैसा नहीं है लेकिन मंदिर पर मंदिर आप बनाते जाते हो तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। 

अच्छी बुक या अच्छे विचार पढने के लिए आपके पास समय नहीं है लेकिन अनपढ़ पंडित की कथा सात-सात दिन तक सुनने के लिए आपके पास समय ही समय है। माइक, टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर, इन्टरनेट का इस्तेमाल आप धर्म और अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए करते हो तब हमारी भावनाएं भी आहत होती है। नास्तिकों की भावनाएं होती है। आहत भी होती है। नास्तिकों की भावनाओं की भी कद्र कीजिये।

पम्मी कुमारी - रून्नीसैदपुर, सीतामढी (बिहार)

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