हद कर दी आपने - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

हद कर दी आपने, 
इन्सानियत, ईमान,
राष्ट्र धर्म व दायित्व 
आचार संहिता जीवन की,
मर्यादा कर तिरोहित,
गिराया मनोबल सैन्यबल,
बस स्वार्थसिद्धि सत्ता की
हद कर दी आपने। 

निर्विवेक पथारोही अविरत,
भूले वतन की अस्मिता,
दुश्मनों को सामने,
नतमस्तक, समर्पित,
बद़जूबानी से लबालब, 
शहीदों के शवों पर,
नमक डालकर घिनौनी,
सत्तागत राजनीतिपरक,
हद कर  दी आपने।

बढ़ाते शत्रु मनोबल अनवरत,
तोड़ निर्लज्जता की सीमाएँ,
निशिवासर राष्ट्रद्रोही हरकतें, 
बेपरवाह राष्ट्रीय सुरक्षा से,
कुछ बद़दिमागी शरारत ताकतें 
साथ में दुश्मन समर्थक 
पैरोकार सोशल मीडिया,
बुद्धिजीवी पत्रकार या 
यों कहें चाटूकार दुश्मन आतंकी,
छद्म धर्मनिरपेक्षी लालची,
हद कर दी आपने।

भ्रष्टाचार से आप्लावित,
दुश्मनों से कर पैसों की
देश की कीमत पर सौदेबाजी,
गाढ़ी जनता की कमाई,
पी. एम. फंड से चुराई, 
अकड़ ऐसी  मानो,
जीत लिया हो समर,
पाक चीनी दोस्ती निभाई,
हद कर दी आपने।

हौंसला बढ़ाई दुश्मनों की,
ख़ुद अपनी सरकार को,
देश के शौर्यवीर सैनिकों को,
संदेह के कटघरे में रख,
प्रश्नचिह्न लगाती गद्दारी,
शर्मसार कर  दी आपने,
माँ भारती की कोख को,
दुश्मनों की नज़र में नित गिरा,
हद कर दी आपने। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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