आयु या आय - लेख - सैयद इंतज़ार अहमद

नई पीढ़ी में संस्कार की न्यूनता लगातार  देखी जा रही है, अनुशासन की कमी भी इसी का दूसरा पहलू है। आधुनिक जीवनशैली, और परिवार से लेकर समाज तक में कुछ सामान्य वरण महत्वपूर्ण अनुशाषित  व्यवहारों को नज़रंदाज़ कर दिया जाना ही शायद इस समस्या का एक विशेष कारण प्रतीत होता है। आजकल परिवार में बच्चों द्वरा बड़े लाड-प्यार से अपनी माता को “तुम” कह कर बुलाना और उसी माता द्वारा अपने पति अर्थात उस बच्चे के पिता को प्रेमवश “तुम” शब्द से संबोधित करना हँसते-खेलते परिवार की निशानी माना जाता है। मित्रों, सहकर्मियों एवं एक ही उम्र के लोगों द्वारा भी एक दूसरे को ऐसे से ही शब्दों से पुकारना या आपस में बातचीत के दौरान असामाजिक भाषा का प्रयोग, सिर्फ अपनी भड़ास निकालने के लिए कर जाना, सामान्य व्यवहार की श्रेणी में ही आता है। कार्यालयों और विशेषकर आधुनिकता से लैस निजी कम्पनियों के दफ्तर तो ऐसी भाषा का प्रयोग करना,मानो अपनी दिनचर्या का हिस्सा ही समझते हैं। कुल मिला कर यदि देखा जाए तो वर्तमान पीढ़ी ऐसे व्यवहार की अभ्यस्त हो गई है।

एक तरफ तो शिष्टाचारहीन भाषा का प्रयोग फैशन और स्टेटस मेन्टेन करने का एक माध्यम बनती जा रही है,तो वहीं दूसरी ओर इसके दुष्परिणाम भी दिखते जा रहे हैं,बच्चे माता-पिता को सिर्फ इसीलिए आदर दे रहें है,क्योंकि उन्हें उनसे कुछ लेना है जैसे,”पापा,प्लीज मुझे ये नया वाला मोबाइल दिला दो न,मैं आपकी सारी बात मानूंगा।" और जब काम पूरा हो जाये तो “पापा, खुद उठ कर लेलो न, मैं अभी गेम खेल रहा हूँ।"

माता-पिता बच्चों के सारे शौक पूरे करते हैं, क्योंकि उन्हें डर इस बात का होता है,की कहीं उनके बच्चे किसी जरूरत को पूरा करने के लिए किसी गलत संगति में न पड़ जाएं, या फिर उनके बच्चों को अपने दोस्तों के बीच शर्मिंदा न होना पड़े। लेकिन बच्चे इन सब का गलत फायदा भी खूब उठाने लगते हैं,और ये सब हमारे समाज को कई तरह की समस्याओं के बीच लाकर खड़ा कर रहा है। लेकिन न माता -पिता इस पर ध्यान देने के लिए तैयार हैं, और न ही समाज। पिता ने यदि थोड़ी कड़ाई की तो मम्मी तुरंत ही बोल पड़ती हैं, ”तुम भी न कमाल करते हो, खुद तो तुम्हारे पापा ने कुछ दिया नही तुम्हें, और अपने बच्चों को भी खुद की तरह बोरिंग बनाना चाहते हो, दिला दो न, यार ! चलो पैसे मेरे कार्ड से पे कर दो। “ ऐसे वाक्य मॉडर्न मम्मी द्वारा बच्चों के लिए क्षणिक लाभ तो अवश्य प्रदान करते हैं, लेकिन साथ ही उन पर इस बात का भी असर डाल देते हैं, की मम्मी के आगे, पापा की कोई बात नही चलती, और दूसरी ये की मम्मी, पापा के पापा यानी दादाजी को भी कुछ भला-बुरा कह सकती है, चाहे उनकी उम्र कितनी भी क्यों न हो। विशेष समस्या तो तब होती है जब गांव से पिताजी का कोई रिश्तेदार आ जाये तब मम्मी द्वारा नाक-मुँह सिकोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, स्थिति और भी समस्या पूर्ण तब होती है जब कोई रिश्तेदार आर्थिक रूप से कमज़ोर हो, तब तो पिताजी का भी व्यवहार काफी हद तक गैर जिम्मेदाराना ही होता है। दूसरी ओर यदि कोई धनी और मॉडर्न रिश्तेदार, भले ही वो दूर का ही क्यों न हो एक दिन के लिए भी आ जाये तो मम्मी -पापा दोनों ही ऑफिस से छुट्टी लेकर उनकी सेवा में लग जाते हैं, और उनकी सेवादारी में कोई कसर नहीं छोड़ते।

एक तरफ गांव से आये आर्थिक रूप से कमज़ोर लेकिन करीबी एवं बुजुर्ग अतिथि के प्रति किया गया व्यवहार तो दूसरी तरफ बड़े शहर से आये धनी, मॉडर्न, हमउम्र लेकिन दूर के रिश्तेदार के प्रति किया गया प्रेम, स्नेह से ओत-प्रोत व्यवहार बच्चों पर बिल्कुल ही अलग-अलग असर डालता है, न तो माता-पिता द्वारा इन सब की व्याख्या कभी की जाती है, और न बच्चे कभी पूछते हैं कि दोनों ही अतिथियों से अलग- अलग व्यवहार क्यों किया गया, बस बच्चे समय के साथ बड़े होते जाते हैं और समझने लगते हैं कि आयु से अधिक आय का सम्मान किया जाता है।

सैयद इंतज़ार अहमद - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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