सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)
रचनात्मक बने - आलेख - सुषमा दिक्षित शुक्ला
गुरुवार, जून 25, 2020
रचनात्मक व्यक्ति कभी अकेला नहीं होता। वह कभी बोर नहीं होता, क्योंकि वह व्यक्ति अपने अकेलेपन में भी कभी अकेला नहीं होता। शिल्प कला संगीत लेखन में दिलचस्पी रखने वाला हर घड़ी अनुसंधान में लगा रहता है। ऊपर से देखने में वह नितांत अकेला उदासीन लग सकता है, किंतु अंदर से वह भाव प्रभाव से भरा हुआ होता है, जो अपनी धुन में मस्त एक लहराए हुए सागर की तरह होता है, एवं सतत क्रियाशील रहना ही श्रेयस्कर समझता है, वह एक वैज्ञानिक ही होता है जो नित नये नये प्रयोग करना चाहता है। प्रकृति प्रेम उसका महानतम गुण होता है। जिनके अंदर रचनात्मकता की कमी है उन्हें चाहिए कि वह धीरे-धीरे अपने अंदर इन गुणों का विकसित करने की कोशिश करें। सीखने सिखाने की कला पर ध्यान दें। उनकी सीखने सिखाने की कला में रुचि पैदा करने की कोशिश ही रचनात्मकता के द्वार खोल देगी और नया मार्ग प्रसस्त करेगी, उदाहरणार्थ कोई भी कला जिसमे रुचि हो जैसे कि पेंटिग, भोजन बनाने की विधि के नए-नए प्रयोग, बागवानी के नये प्रयोग, घर की साज-सज्जा के नए-नए तरीके, बुनाई ,सिलाई, कढ़ाई के नए प्रयोग करके भी कला कौशल दिखाया जा सकता है।
पेट तो कीड़े मकोड़े भी भर लेते हैं और पड़े रहते हैं। अतः जीवन मे कुछ रचनात्मक कार्य अवश्य करने चाहिए।
इस समय जब कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन चल रहा है तब घरों में रहकर ही अपने रचनात्मक गुणों को विकसित किया जा सकता है। इस समय का भी हमे सदुपयोग करना चाहिए। ऐसे अवसर पर व्यर्थ न गंवा कर हम संसार को कुछ दे सकते हैं और इसी मे हमारे जीवन की सार्थकता निहित है। ये बुरा वक्त भी कट जायेगा ऐसे मे हमे सावधानी बरतते हुए समय का सदुपयोग करना चाहिए ।
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