हां, मै विद्रोही हूं - कविता - अशोक योगी "शास्त्री"

मै वामपंथी नहीं हूं
लेकिन लिखता रहूंगा
धन कुबेरों के खिलाफ
शोषण की प्राचीरों के खिलाफ।
मेरा लेखन जारी रहेगा 
सृष्टि में प्रलय होने तक
नवोदित कवियों के रूप में
गरीबों की भूख के लिए।

मै विषधर नहीं हूं 
परंतु उगलता रहूंगा ज़हर
विश्व में व्याप्त ......
असमानता के खिलाफ 
घृणा द्वेष ईर्ष्या क्रोध
और मानवता के खिलाफ
जाति  धर्म ........
और नस्लवाद के खिलाफ
विश्व बंधुत्व के लिए।

मै नास्तिक नहीं हूं 
किन्तु  बना रहूंगा नास्तिक
देवताओं के खिलाफ
इशा मूषा पैगंबर के खिलाफ
पतित धर्मगुरुओं के खिलाफ
खुल न जाएं मंदिर के 
कपाट जब तलक 
सर्वजन सर्वहिताय के लिए।

मै विद्रोही हूं
ठीक सुना आपने 
हां , मै विद्रोही हूं
करता रहूंगा विद्रोह अनवरत
भय भूख भ्रष्टाचार के खिलाफ
दंभी निरंकुश सरकार के खिलाफ
ढोंगी लोभी मक्कार के  खिलाफ
साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ
पक्षपाती व्यवस्था  के  खिलाफ
अन्धविश्वास और कुप्रथाओं के खिलाफ
समानता और मानवता के लिए।

मै लड़ता रहूंगा सतत्
सरित गिर पहाड़ के लिए
आधी आबादी के अधिकार के लिए
मजबूर और लाचार के लिए
खाद्यान्न और आहार के लिए
पानी  और  पवन  के  लिए
जंगल  और   वन  के  लिए
निर्धन और बहुजन के लिए
छल  कपट  शमन  के  लिए
चिर स्थाई सर्वमंगल के लिए ...।

अशोक योगी "शास्त्री" - कालबा नारनौल (हरियाणा)

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