उम्मीद - कविता - शेखर कुमार रंजन

मै हूँ जमीन पर अभी
पर मेरी हौसलों में दम है
छूऊँगा एक दिन जरूर आसमान को
क्योकिं मेरे जमीर में दम है।

अच्छी किश्मत ले लो मुझसे कोई परवाह नहीं
मुझे मेहनत के दम पर सब कुछ करना है
मेहनत करने से पीछे नहीं हटूँगा
क्योंकि शेखर को शिखर पर पहुँचना है।

लाख अँधेरे में धकेल दो मुझे
मैं अंधेरों से घबराउंगा नहीं
अंधेरों पर विजयी प्राप्त कर मैं
जुगनू बन उड़ जाऊँगा।

मै नहीं डरूंगा और मैं अरूँगा
मै हरदम खुद से लरूँगा
रास्तों के पत्थर पर ठोकरें भी लगेंगे
मैं उन ठोकरों से हिम्मत नहीं हारूँगा।

मुझे जितनी बार गिराओगे
मैं उतनी बार खड़ा हो जाऊँगा
तुम असफलताओं का तेज धारा लेकर आओगे
और मैं हिमालय के चट्टानों सा खड़ा रहूँगा।

मै तुम्हें इजाजत नहीं देता
की तू मुझे अपमानित करो
क्योंकि मेरी जमीर मुझे कहती है
कि मुझे मेरी मंजिल मिलेगी।

मैं सक्षम हूँ कुछ कर गुजरने के लिए
और इसमें कोई संदेह नही
उम्मीद से भरा पड़ा हुआ हूँ
अब बारी हैं मंजिल पाने की।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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