संघशक्ति होती विजय - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

उषा   नयी  स्वागत करें , नया जोश  नव सोच।
मातु  पिता   पद वन्दना , नमन  गुरु पद  लोच।।
चित्त   धरूँ  हरि  पद चरण , माँगू   मैं  वरदान।
राष्ट्र  सुरक्षित  चहुँमुखी , प्रकृति खिले मुस्कान।। 
दीन हीन  पीड़ित दलित , हो  सबका   उत्थान।
सही प्रगति तब राष्ट्र का , जीएँ मिल सुख शान।।
सबको नित शिक्षा मिले,सबको निज अधिकार।
राष्ट्र बोध   कर्तव्य   हो ,   सबका    हो   उद्धार।। 
मिले सभी  को  जीविका , जो   हो  जैसा पात्र।
मानक  हो  नित योग्यता , जाति धर्म नहि गात्र।।
प्रोत्साहन  नित अरुणिमा , प्रगति राह आसान।
कुसमित हो जीवन कली, सुरभित मन वरदान।। 
उद्यम    ज्ञानालोक    से , आलोकित हो   देश।
सृजन लोक  भारत बने , कवि निकुंज   संदेश।। 
चलें   बनाए  राष्ट्र  को , व्याधि रहित हम स्वर्ग।
ध्वजा तिरंगा   शान हम , खु़द  होऊँ    उत्सर्ग।। 
रखें  राष्ट्र   की    एकता , चलें राष्ट्र   के साथ।
मतवाले  जय  हिन्द का,  मददगार  हो  हाथ।।
संघशक्ति  होती  विजय , शत्रु मिले नित हार।
नयी  भोर   जीवन  प्रभा , मानवीय   उपहार।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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