मातु पिता पद वन्दना , नमन गुरु पद लोच।।
चित्त धरूँ हरि पद चरण , माँगू मैं वरदान।
राष्ट्र सुरक्षित चहुँमुखी , प्रकृति खिले मुस्कान।।
दीन हीन पीड़ित दलित , हो सबका उत्थान।
सही प्रगति तब राष्ट्र का , जीएँ मिल सुख शान।।
सबको नित शिक्षा मिले,सबको निज अधिकार।
राष्ट्र बोध कर्तव्य हो , सबका हो उद्धार।।
मिले सभी को जीविका , जो हो जैसा पात्र।
मानक हो नित योग्यता , जाति धर्म नहि गात्र।।
प्रोत्साहन नित अरुणिमा , प्रगति राह आसान।
कुसमित हो जीवन कली, सुरभित मन वरदान।।
उद्यम ज्ञानालोक से , आलोकित हो देश।
सृजन लोक भारत बने , कवि निकुंज संदेश।।
चलें बनाए राष्ट्र को , व्याधि रहित हम स्वर्ग।
ध्वजा तिरंगा शान हम , खु़द होऊँ उत्सर्ग।।
रखें राष्ट्र की एकता , चलें राष्ट्र के साथ।
मतवाले जय हिन्द का, मददगार हो हाथ।।
संघशक्ति होती विजय , शत्रु मिले नित हार।
नयी भोर जीवन प्रभा , मानवीय उपहार।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली