आत्महत्या किसी समस्या का समाधान कदापि नहीं - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

अपने आप मे बड़ा भयावह सा डरावना सा शब्द है ख़ुदकुशी। जो की स्वाभाविक मृत्यु से बिल्कुल अलग है ,हालांकि मृत्यु का तो हर रूप ही भयावह होता है मगर् खुद मौत मांग लेना, यह तो किसी की घोर निराशा का अंतहीन  सारांश है, जो आत्मघात के साथ समाप्त होता है।यह युगों से चला आ रहा है कि स्वयं से पराजित हुआ व्यक्ति  खुदकुशी को गले लगाकर अपने दुःखो से मुँह मोड़ लेता है।

जीवन कितना भी कुरूप क्यों न हो मृत्यु के मुकाबले सुंदर ही होता है। हमारे आसपास ऐसे असंख्य व्यक्ति हैं जिनका जीवन अत्यंत कठिन है फिर भी वे जीवन  को उम्मीद से जी रहे हैं। मनुष्य के लिए जीवन से पराजित होना नया नहीं है। हर युग में ऐसा होता रहा है।

आत्महत्या करने के कई गंभीर कारण होते हैं अन्यथा कोई भी खुशी-खुशी मौत को गले नहीं लगाता। आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सम्पन्नता एवं विपन्नता से  प्रभावित  होकर आत्महत्या नहीं  करता है। आत्महत्या समस्या से जूझते जीवन का अंत है न कि उसका समाधान। जिसके लिए  मौत को गले लगाने के लिए मजबूर हो। वास्तव में कोई दुख तकलीफ जिंदगी से बढ़कर नहीं होती। हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी निराशा का दौर अवश्य ही आता है, जब लगता है कि सब खत्म हो गया, लेकिन इससे आहत होकर व्यक्ति खुद को ही समाप्त कर ले यह तो कायरता पूर्ण कृत्य है।
हौसला रखना चाहिए यह सोच कर कि जीवन में परीक्षा की घड़ियां चल रही है। जब एक डूबते को तिनके का सहारा हो सकता है तो अंतिम सांस तक कोशिश की जाए। मौत को दावत देना है हल नही है इसका।

मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे  हैं इसका प्रमुख कारण है जीवन चक्र मे लोगों की तेजी से बदलती जीवन शैली। बेरोजगारी, प्रेम में असफलता  भी अहम कारण है लोगों को आत्मघात की ओर प्रेरित करने के। अन्य भी ऐसे कई कारण जो व्यक्ति को निराशावादी बना देते हैं जैसे की गम्भीर बीमारी से ऊब एकाकीपन घरेलू कलह, ब्लेकमेलिंग का डर, परीक्षा मे असफलता आदि कई ऐसे कारण हैं जो व्यक्ति को आत्महत्या की ओर प्रेरित करते हैं। धन दौलत को ही सर्वस्व मानने की प्रवृत्ति के कारण भी आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। तनाव के क्षणों में मजबूत लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, वह लोग जिनके पास सब कुछ होता है। शान, शौकत, रुतबा, दौलत, इज्जत  सब होता है वह भी। नमें से कुछ भी उन को आत्महत्या के लिए नहीं रोक पाता। क्या पा जाएंगे मौत को गले लगाकर।
अगर आत्महत्या समाधान है तो मरने के बाद क्या वह सुख को प्राप्त कर लेंगे जिसके अभाव में उन्होंने जिंदगी का अंत कर दिया। नहीं कदापि नहीं ,सारे सुख और दुख यहीं इसी धरती पर छूट जाते हैं। बहादुरी तो चुनौतियों को स्वीकार करने में है ना कि हार कर मौत को गले लगाने में।

वीरता तो प्रतिबद्धता के साथ जुझारू पन दिखाने में है। लेकिन समाज के लोगों का भी नैतिक धर्म बनता है कि उसके परिवार या मित्र या कोई ऎसा व्यक्ति जो निराशा के गर्त मे डूब रहा हो उसे कुछ भावनात्मक सहारा दें। कम से कम समझाया जा सकता है हौसला बढ़ाया जा सकता है या फिर उसे मनोचिकित्सक से मिलने की राय तो दी जा सकती है। जिससे आत्महत्या के मामलो मे काफी हद तक कमी निश्चित तौर पर आयेगी।  

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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