क्या नारी की प्रकृति हैं ये आंसू? - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

सुख में आंसू दुख में आंसू।
मानव -जीवन में आंसू।
क्या नारी की प्रकृति है ये आंसू?

पल में तोला पल में माशा।
पल में आशा पल में निराशा।
क्या नारी की नियति हैं ये आंसू?

ललक है कभी लालन की।
मुश्किल है कर्तव्य पालन की।
क्या नारी की संतति हैं ये आंसू?

संपत्ति जमीन से फलक तक।
की वीर-प्रसूता नहीं संतुष्ट।
क्या नारी की उत्पत्ति हैं ये आंसू?

फिर भी जन्म दात्री है संतति की।
किसी हैवान की किसी इंसान की।
क्या नारी की विपत्ति हैं ये आंसू?

है पति-पुत्र से अपेक्षा रक्षा की विकल अपेक्षा कभी सुरक्षा की। क्या नारी की संपत्ति हैं ये आंसू?

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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