तुम ही हो - कविता - गौतम कुमार कुशवाहा

तुम   ही   अरमान   हो  मेरी , तुम  ही  जान   हो   मेरी।
तुम ही दुश्मन,तुम ही दोस्त, तुम ही सारा जहान हो मेरी।।

मेरे  आँखों  का  तारा तुम ही हो,
मेरे स्वप्नों का सितारा तुम ही हो।
जिख़्मी दिलों का सहारा तुम ही हो,
चाँदनी रातों का नजारा तुम ही हो।।

तुम ही तुम हो इस जहाँ में , मुझे कोई और दिखता नही।
कटु शब्दों के तार से भी, दिलों का तार कभी टूटता नही।।

मंजिल पाना आसान हो जाता,
जो तेरा साथ मुझे मिल जाता।
मेरे  चेहरे  पर  भी  मुस्कान होती,
मैं  भी  गीत  गजलें   गुनगुनाता।।

भटकते-भटकते तेरी गलियों में,चाहे पॉव मेरा छिल जाये।
सब कुछ त्याग दूँगा मैं , मुझे बस प्यार  तेरा  मिल जाये।।


गौतम कुमार कुशवाहा - मुंगेर (बिहार)

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