है धवल चाँद मुरझाया सा - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

चाँद     मौन     बना   आकाश में ,
शीतल    चन्द्रिका   मलिन    हुई।     
शोकाकुल  देख    निशाचर    को,
निशिचन्द्र प्रिया निशि पिघल गई। 

रवि   तापित  भू  अस्ताचल में,
मधुरिम निर्मल शशि प्रिया नहीं।
खो    गयी  चाँदनी क्लेश  धरा,
करुणार्द्र  पीड़ जन सिसक रही।

कर सोम सुधा  रसपान   जगत,
चन्द्रहास कहीं अब बिखर गया।
चंदा    मामा   अब   कौन  कहे, 
कोराना  का  जग   त्रास   मचा। 

है    धवल  चाँद   मुरझाया  सा, 
हुई   विलीन  छटा  रत्नाकर की।
जो  इन्दधनुष    सतरंग   शिखा 
मुस्कान   चाँद  नभ मलिन  हुई।

रतिराग  विकल  है   चंद्रकिरण,
सज  धजी  वसन  तारक मोती।
हो प्रीत मिलन कब चाँद  सजन
रजनीगन्धा  निशि  महक   रही। 

ऋतुराज  मधुप  रसमादक  बन,
पिकगान   सरस  माधवी   सुनी।
अस्मित मुख लखि रसाल मुकुल,
अभिसारक चाँद  ख़फ़ा  सजनी।।

चन्द्रहास  गगन  परिहास बना,
अश्क नैन  भरी  दिल तार हुई।
रूठ  शशि प्रिया रनिवासर को,
मत जा सौतन निशि मना  रही।

आएगा  फिर मधुरिम  रौनक, 
बन इन्दु प्रभा फिर चमकोगी।
पीयूष    विधूदय  होगा  फिर, 
राकेश  निशा   रस  बरसोगी। 

उन्मुक्त उड़ाने  प्रेम   क्षितिज , 
अनुराग चाँद अति  इन्दुसखी। 
नभ कुमुद खिले,महके खूशबू,
हो  चाँद  खड़ा मनुहार  सखी। 

छा  महातिमिर  जग   कोरोना,
है कोप प्रकृति जग लालच की।
फिर   सुधर  रहा  चर्या  मानव,
घन  रहित  चन्द्रिका    छाएगी। 

हो शान्ति  सुखद  हर्षित दुनिया,
चाँद   गगन   मुस्कान   खिलेगी।
कर प्रकृति   मातु  थाली  आरत,
फिर चन्द्रमुखी गुलज़ार  करेगी।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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