आत्मबल - कविता - शेखर कुमार रंजन

आज चलो हम प्रण ले
अपनी मंजिल को पाने की
मेहनत करते चलेंगे हरदम
डर नहीं कुछ खो जाने की।

आँखों में मंजिल दिखती है
रास्ता खुद बनाऊंगा
अपनी मंजिल पूरा कर
दुनिया को दिखलाऊंगा।

चाहे जितनी ठोकरें लगे
पैर ना पीछे हटाऊंगा
पैरों से पत्थर को मै
चकनाचूर कर जाऊंगा।

अपनी मंजिल को पाने की
कसम आज मैं खाता हूँ
पूरा करू मैं मंजिल को
इसलिए शीष झुकाता हूँ।

धैर्य और संयम के साथ मैं
जीवन के पथ पर चलता जाऊंगा
मुझे लगता है चलता हुआ ही
मैं मंजिल को पाऊंगा।

असफलता,हताशा व नकामी को
मैं पीछे छोड़ता जाऊंगा
सकारात्मक सोच के साथ
मैं आगे बढ़ता जाऊंगा।

हे प्रभु दे ऐसी शक्ती
लोभ, मोह व स्वार्थ को त्यागू
आत्मबल बढ़ाकर अपनी
मैं मंजिल को पा लू।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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