बने स्वच्छ पर्यावरण - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुुुंज"

खुद जीवन का रिपु मनुज ,  खड़े मौत आगाज।
बिन मौसम   छायी  घटा , वायु   प्रदूषित  आज।।१।।

भागमभागी    जिंदगी , बढ़ते      चाहत    बोझ।
सड़क  सिसकती  जिंदगी , वाहन  बढ़ते    रोज।।२।।

चकाचौंध    औद्योगिकी , नभ   में   फैला   धूम।
जले   पराली   खेत  में , मौत    प्रदूषण     चूम।।३।।

चहुँदिक्  है फैला तिमिर ,भेद मिटा   निशि  रैन।
नैन    प्रदूषित  जल   रहा , सुप्त  प्रशासन चैन।।४।।

हृदय  रोग  बढ़ता  प्रकोप , दृष्टि   दोष  फैलाव।
बढ़ा   चिकित्सा  गेह  में , रोगी   भीड़   जमाव।।५।।

दोषारोपण     आपसी , तज    अपना  दायित्व।
पहन    मुखौटा   कर्मपथ , यायावर    अस्तित्व।।६।।

अज़ब प्रदूषण  है    यहाँ   , कामगार बन  मीत।
होंगें     बच्चे     प्रदूषित , कर्मपथी       निर्भीत।।७।। 

निर्माणक   भविष्य    का , योगबली      नीरोग।
भूकम्पन   प्लावन  सलिल  ,शीतातप     दुर्योग।।८।।

स्वार्थ   कपट   मदमत्त हो , झूठ शलाका  चित्त।
नफ़रत निंदा नित  व्यसन , करे  लूट   की   वृत्त।।९।।

अन्तर्वेदित      लालची , काटे   नद   नदी  वृक्ष ।
जल निकुंज  सुषमा  विरत , दूषित भू  अंतरिक्ष।।१०।।

प्राण  वायु  अत्यल्प  भुवि , धुआँ  जग आकाश।
ग्रसित सूर्य शशि  लापता , मृत्यु     करे उपहास।।११।।

तज विवेक  नित  सोच को ,भ्रष्ट   प्रदूषक  तन्त्र।
भोग    विलासी     सम्पदा , रच    नेता  षड्यंत्र।।१२।।

लक्ष  लक्ष  चल गाड़ियाँ , रात्रि दिवस विष छोड़। 
हृदय  घात अवसान पत्र , फिर  ही  लगता दौड़।।१३।।

कवि "निकुंज" अन्तर्व्यथित , ज़हरीला  ले श्वाँस।
रोग शोक मद नित मना ,  ज़ख्मी  दिल्ली  वास।।१४।।

चेतो, अब भी  वक्त  है , नेतागिरि  तज   स्वार्थ।
कर  उपाय  विध्वंस विष , जीओ जग  परमार्थ।।१५।।

मिटा   प्रदूषण  साथ   में , प्रजा  संग  सरताज।
शासन  सह  जनता वतन ,रोपण तरु  आगाज।।१६।। 

स्वयं सजग जन जागरण , कर  प्रदोष उपचार।
पुनः सजाएँ  हम  प्रकृति ,  जो जीवन  आधार।।१७।। 

कुदरत का अद्भुत सृजन,भू जलाग्नि नभ वात। 
जाति धर्म भाषा विविध , जीवन  नया   प्रभात।।१८।।

बने  स्वच्छ   पर्यावरण   ,  निर्मल  हो  परिवेश। 
हो नीरोग  जन देश का , सुखद  सरल   संदेश।।१९।।

बने  मीत   निज    जिंदगी , गढ़ें   चारु  संसार।
सप्त सरित पावन धरा , प्रगति सिन्धु  आचार।।२०।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुुुंज" - नई दिल्ली

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