पढने की उम्र मे ही पापा तुमने मेरी सगाई कर दी - कविता - चीनू गिरि


पढने की उम्र मे ही पापा तुमने मेरी सगाई कर दी ......
शादी करने के चक्कर में मेरी बन्द पढाई कर दी.....
अभी तो गुडिया से खेलती माँ से लिपट कर सोती थी.....
बडी हो गई कह कर पापा तुमने मेरी विदाई कर दी....
पापा तुमने तो कहाँ था ये घर तेरा है तु मेरी परी है.....
फिर क्यो विदा करके पापा तुमने मुझे पराई कर दी.....
मेरी सब सहेली पढ लिखकर अपने पैरो पे खडी है ......
मै अनपढ रह गई,पापा तुमने मेरी क्या भलाई कर दी.....
सब लोग अनपढ गँवार कह कर ताना देते है मुझे ,
पढाई छुड़वा के पापा तुमने मेरी जग हसाई कर दी ......
अपनों को छोड कर मै नये रिश्ते बनाने आई थी.....
मगर सुसरल वालों ने तो मुझे कामवाली बाई कर दी.....
पढने की उम्र मे ही पापा तुमने मेरी सगाई कर दी .....
शादी करने के चक्कर में मेरी बन्द पढाई कर दी......

चीनू गिरि - देहरादून उत्तराखंड

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