मुर्दा के बोल - कविता - मयंक कर्दम



सोते हुए को मुझे जगाते क्यो हो?
जाने दो अब मुझे बुलाते क्यो हो?

धौती-कुर्ता अब पहनाते क्यो हो?
श्वेत कफन  मुझे चढाते क्यो हो?

जिंदा देते पानी घबराते क्यो हो?
खुद रोकर मुझे रूलाते क्यो हो?

जिंदा पर मुझ को मारते क्यो हो?
हटा कफन अब निहारते क्यो हो?

संग चलते बच्चे भगाते क्यो हो?
चार कंधो चलन सिखाते क्यो हो?

मेरे आराम को युद्ध कराते क्यो है?
लकडी की यूं सेज सजाते क्यो हो?

जिंदा पर तमाशा दिखाते क्यो हो?
जलाकर भी मुझे जलाते क्यो हो?

मयंक कर्दम - मेरठ (उ०प्र०)


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