हम तुम - कविता - भरत कोराणा


जब खामोशी
गा रही थी
प्रणय वेदना 
तब हम - तुम
हाथ थाम
निगाहें मिला सोच रहे थे। 
की ये पुराना पीपल
और इसके पीले पत्ते
कितने गवाह है 
हमारे हम- तुम होने का। 
जब गीली बजरी के
टीले पर हम- तुम
बैठे मौन साधते
साधु बन 
अनायास ही फेकते कंकड़
किनारे तक। 
तब बहुत बार
 गवाह बन जाते
वो सुहाने तट
जी प्रमाण पत्र थे 
हमारे हम- तुम होने का। 
जब तारे बिंदु बन
मंडरा जाते 
सुहानी रातों में
तब केवल 
हम- तुम जग कर देखते थे। 

भरत कोराणा
जालौर (राजस्थान)

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