जब खामोशी
गा रही थी
प्रणय वेदना
तब हम - तुम
हाथ थाम
निगाहें मिला सोच रहे थे।
की ये पुराना पीपल
और इसके पीले पत्ते
कितने गवाह है
हमारे हम- तुम होने का।
जब गीली बजरी के
टीले पर हम- तुम
बैठे मौन साधते
साधु बन
अनायास ही फेकते कंकड़
किनारे तक।
तब बहुत बार
गवाह बन जाते
वो सुहाने तट
जी प्रमाण पत्र थे
हमारे हम- तुम होने का।
जब तारे बिंदु बन
मंडरा जाते
सुहानी रातों में
तब केवल
हम- तुम जग कर देखते थे।
भरत कोराणाजालौर (राजस्थान)