मै नदी किनारे
वन में रहता हूं
शीत ... उष्ण
वात......भीषण
मेघ........गर्जन
हिम........ वर्षण
सब कुछ अपने
तन पे सहता हूं ।
नहीं राग है
नहीं द्वेष है
नहीं लाड है
नहीं क्लेश है
ओढ़ के नभ को
रज पे सोता हूं
मै नदी किनारे
वन में रहता हूं ।
ना भय का बसेरा
ना घृणा का डेरा
खग कलरव संग
आए नया सवेरा
नित्य लहरों के संग
जल में बहता हूं
मै नदी किनारे
वन में रहता हूं
अशोक योगी - कालबा नारनौल