चौपट हुयी सब अर्थव्यवस्था पूर्ण करेगी मधुशाला - कविता - बजरंगी लाल यादव


लाँक डाउन ने ऐसा ढ़ाला,
लगा दिया चहुँ ओर है ताला,
चौपट हुयी सब अर्थव्यवस्था,
पूर्ण      करेगी       मधुशाला।

          बन्दी ने ऐसा कर डाला,
          ऊबा घर में रहने वाला,
          सत्ताधीश ने भी अच्छा सोचा,
          क्यों न खुली रहै मधुशाला।

कोरोना का बड़ा बोलबाला,
अर्थव्यवस्था भी खा  डाला,
तब पैसों की जुगत लगायी,
क्यों न खुली रहै मधुशाला।

            बन्द हुए पूजा आलय सब,
            डर बैठे   हैं    पुजारी सब,
            मन्दिर मस्जिद काम ना आए,
            खुले रहे हैं  रुग्णालय   सब।

मुल्ला जी भी छुप बैठे मस्जिद में लटका ताला,
गम में ऐसे डूबे जैसे पड़ा हुआ मुँह पर पाला,
आकर   घूंँट   लगा   लो  तुम  भी,
खुली    हुयी   है    मधुशाला।

                शिक्षा- दीक्षा भी बन्द रहेगी,
                बन्द रहेंगी.      पाठशाला,
                पीने   वालों    गम  को पीयो,
                खुली   हुयी   है    मधुशाला।

डॉक्टर हों या स्वास्थ्य कर्मियों,
टेन्शन   ना तुम   लेना मोल,
पुलिस सिपाही स्वच्छ कर्मियों,
दो घूँट   लगाना   बोतल खोल।

               राय मेंरी गर मानों तो,
               सब घर में पहुँचा दो हाला,
               कोई ना घर से निकलेगा,
               पी पी कर के मधुशाला।

पीकर मदिरा गर निकलेगा,
व्यक्ति कोई हो मतवाला,
सच कहता हूँ काँप उठेगा,
कोरोना उपजाने वाला।

              हे! माननीय मैं कहता हूँ,
              छोटा मुँह बात बड़ी सी बोल,
              स्वर्णकार की खुलें दुकानें,
             पीने हेतु,जहाँ बिके हैं गहनें मोल।

 मैंने सुना है क्वारंटीन से,
बहु व्यक्ति मिला भागने वाला,
विनम्र निवेदन करता है सब कोई पीने वाला,
क्यों न सभी क्वारंटीन में खुलवा देते मधुशाला।

बजरंगी लाल यादव
दीदारगंज,आजमगढ़ (उ०प्र०)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos