बेटी - कविता - गौतम कुमार

मत धकेलों दलदल में हमको , मेरी उम्र बहुत है छोटी।
बेटों को मिलता मक्खन पुआ , बेटी  को  सुखी रोटी।।

                    मत  मारो  हमको माता ,
                    हम   भी   तेरे  हैं  फूल।
                    बेटों के जैसा हमको भी,
                    नित   जाने  दो  स्कूल।।

कच्ची आँगन को भी सौन्दर्य करें ,लगा के बेटी चौका।
सब कुछ कर सकती है बेटी , मिले जो इसको मौका।।

                    दूजा देश से बेटी , गोल्ड 
                    मेडल को जीत के लाये।
                    कौन  सा  ऐसा  काम है ,
                    जो  बेटी  ना  कर पाये।।

माँ  का  रूप  धारण  कर  बेटी , बेटों को देती दीक्षा।
हम  भी  एक   संकल्प   करें , करेंगें   इनकी   रक्षा।।

                    ना चाहिए इसे दौलत की
                    बड़ी   -   बड़ी    पेटियाँ।
                    दो - दो कुलो को  रौशन
                    करती   है   ये   बेटियाँ।।

मत मारिये हमें जन्म से पहले , हमें भी जन्म लेने दीजिये।
हे! सृष्टि के निर्माता , मुझपर ना ऐसा अनर्थ होने दीजिए।।

गौतम कुमार
बारीचक ,मुंगेर (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos