समय समय की बात - ग़ज़ल - समुन्दर सिंह पंवार


समय - समय की बात हों सैं
कदे दिन बड़े कदे रात हों सैं

कदे पड़ज्या भयंकर सूखा
कदे बाढ़ के हालात हों सैं

कदे तारीफा की लगै झड़ी
कदे शिकवे और सिकात हों सैं

कदे सपने में भी ना दिखै
कदे रोज मुलाकात हों सैं

कदे तेरामी छमाही बरसी
कदे ब्याह, सगाई भात हों सैं

भगवान के तुल्य समझनिये नै
अपने पिता और मात हों सैं

मरना - जीना, यश - अपयश
अपणे ना ये हाथ हों सैं

बेरोजगारी और नशे में
ज्यादातर उत्पात हों सैं

कदे लबो पै ताला जड़ज्या
कदे काबू ना जज्बात हो सैं

कदे हाथ में कट्टे , पिस्टल
कदे कलम दवात हों सैं

कदे गमों की आंधी चालै 
कदे खुशियों की बरसात हों सैं

कदे अपणे भी दूर होज्यां
कदे पराये भी साथ हों सैं

गुरु चरण में बैठ पँवार
हल सारे सवालात हों सैं


समुन्दर सिंह पंवार 
रोहतक, हरियाणा

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos