पृथ्वी - कविता - निरंजन कुमार पांडेय


(कविता-पृथ्वी)
पर्वत ,नदियाँ ,सुंदर फुलवारी विभिन्न आकार के जीव -जंतुओं का बोझ ढोती है 
धात्री तुल्य पृथ्वी 
है फर्ज  कि 
संतान बनकर 
इसे 
संतुलित रखें 
ढेर सारे वृक्ष लगायें 
बचाये रखें 
सबका जीवन का आधार ।

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(कविता-शिखर)
तय लक्ष्य के लिए
प्रयासरत् हों
खाते न भय ,
रोकते न पैर ,
एक दिन पहूँच हीं जाते हैं 
अभिलाषा की शिखर पर ।

~~

(कविता-कर्म )
कर्म हीं धर्म ,
कर्म हीं पूजा 
-सी उपमा ग्रहण 
किये कर्म ,
सारे सचर अचर का 
मार्गदर्शन करते हुए ,
इसे चलायमान रखते है ,
इसके अस्तित्व को 
करता आया है प्रस्तुत ।


निरंजन कुमार पांडेय
अरमा लखीसराय -बिहार 

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