आज वर्दी खाकी फिर शर्मशार हो गई
गुंडों के आगे बेबस और लाचार हो गई।
किसी ने पत्थर बरसाए किसी ने भांजी लाठियां
नीलाम इज्ज़त वर्दी की सरे बाजार हो गई।
थूका वर्दी पर सरे राह दो कोड़ी के जमातियों ने
निहंगो के आगे अब हाथों से भी लाचार हो गई ।
खड़ी रही चौराहे पर दिन रात तुझे बचाने को
फिर भी तेरे मुंह से गालियों की बौछार हो गई ।
राह ताकती है बेटी मेरी भी छत की मुंडेर पर
घर में बैठी बूढ़ी मां भी अब बीमार हो गई ।
तेरी हिफाज़त को अपना फ़र्ज़ निभाती हूं मै
मगर मेरी वफा भी अब दरकरार हो गई ।
दिखाऊं अश्क किसके आगे अपने "योगी"
अब तो शिखंडियो की हर तरफ भरमार हो गई।
अशोक योगी "शास्त्री" - कालबा हाउस नारनौल