खिलौना - कविता - निरंजन कुमार पांडेय


खिलौना 
मेरा बचपन का 
सबसे अच्छा दोस्त 
मेरे तन -मन का उत्कर्षक 
मेरे साथ दिनभर रहना 
रात में  बिछावन पर भी 
इसका साथ ही होना
खूब याद है ।

मुकर्रर ,
इसकी कोई कोटि नही 
इसका होना 
हमारे सामर्थ्य पर निर्भर ।
मोहन के पास चाबी वाली गाड़ी ,
उसके 
पिताजी नौकरी में थे 
मेरे बाबा थे मजदूर 
खरीद दिये थे 
दशहरे में 
मिट्टी का हाथी ।

मैं भी था आविष्कारक 
बनाता था 
कागज के नैया ,जहाज नाग 
आदि ,
टीन के डिब्बे और सुतरी का फोन 
मैंने भी बनाये थे।
खिलौना !
मुझमे रचनात्मकता संचालन का गुण भरता है ।

मेरे जैसा 
मेरी अगली पीढी 
भी बने आविष्कारक 
स्वप्न कि 
कुछ बड़ा ईजाद करे ।


निरंजन कुमार पांडेय
अरमा लखीसराय -बिहार 

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos