प्रेम रहा भरपूर - कविता - द्रौपदी साहू

प्रेम रहा भरपूर - कविता - द्रौपदी साहू | Prem Kavita - Prem Raha Bharpur. प्रेम पर कविता
आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर।
इक था राजा इक थी रानी, प्रेम रहा भरपूर॥

कैसे ढूँढे़? किससे पूछे? पता बताए कौन?
रुकती ना आँसू आँखों की, देख रहे सब मौन!
दुख के बादल घिरते जाते, फूटा ना अंकूर।
आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर॥

आ जाओ प्रिय साथ निभाने, हो जीवन उल्लास।
बंधी रहे साँसों की डोरी, टूटे न विश्वास॥
रानी प्रिय की उन यादों में, है हर पल ही चूर।
आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर॥

ना रूठूँगी ना झगड़ूँगी, तुमसे मेरे मीत।
सँग रहेंगे और गाएँगे, जीवन के हर गीत॥
तुम बिन ना रह पाऊँगी, तुमसे ही मुझमें नूर।
आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर॥

दिन-दिन बीतता जाता पर, देखती रहती बाट।
उन आँखों की इस आशा को कौन सकेगा पाट॥
दशा देखकर द्रवित हुए सब, पर हैं वे मजबूर।
आँधी आई चला गया वो, जाने! कितना दूर!!

आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर।
इक था राजा इक थी रानी, प्रेम रहा भरपूर॥

द्रौपदी साहू - छुरी कला, कोरबा (छत्तीसगढ़)

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