पाकर तुमको, हमारी क़िस्मत क्या होगी - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'

पाकर तुमको, हमारी क़िस्मत क्या होगी - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज' | Ghazal - Paakar Tumko Hamaari Kismat Kya Hogi
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तक़ती:  22  22  22  22  22  2

पाकर तुमको, हमारी क़िस्मत क्या होगी,
है तो ख़्वाब हसीन, हक़ीकत क्या होगी।

आ तो गए है, तेरी जुस्तुजू में यहाँ तक,
वापसी की ख़ुदा जाने, क़ीमत क्या होगी।

चाहा तुम को ही मिन्नतों में, ख़ुदा से महज़
जो रहे संग तिरा, फिर हसरत क्या होगी।

ख़ुशियों के पीछे, कहीं ग़म भी छुपा होगा,
गुज़रा कहीं ग़म से तो, क़यामत क्या होगी।

अपने माज़ी से सहमा सा रहता है 'सुराज',
जाने! फिर से नई अब, ज़ुल्मत क्या होगी।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos