अवनीश चंद्र झा - वैशाली (बिहार)
हिम्मत - कविता - अवनीश चंद्र झा
बुधवार, अक्टूबर 29, 2025
आ ज़रा, पास तो आ मेरे
गले लगा मुझे, मुस्कुरा तो सही
अपना हाथ, मेरे हाथ में रख
एक बार नज़र मिला तो सही
ये युद्ध का मैदान है पगले
एक बार शमशीर उठा तो सही
आ ज़रा, पास तो आ मेरे
तोड़ कर सारी बंदिशे
जो लिपटा है तुझसे
भय का मकरी जाल
उसे ज़रा हटा तो सही
आ ज़रा, पास तो आ मेरे
सफर में अकेला है जानता हूँ
कुछ क़दम चल साथ मेरे
एक आवाज़, लगा तो सही
ये डर की जो दीवार है
उसका डटकर सामना कर
अँधेरा है बहुत मानता हूँ
एक 'मशाल' जला तो सही
आ ज़रा, पास तो आ मेरे
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