चिड़िया की मौत - कहानी - डॉ॰ सुनीता सिंह

चिड़िया की मौत - कहानी - डॉ॰ सुनीता सिंह | Hindi Kahani - Chidiyaa Ki Maut - Dr Sunita Singh
प्रातः काल सूर्य का प्रकाश चारों तरफ़ पूरी तरह से फैल चुका था। सूरज की प्यारी प्यारी किरणें धरातल को सुशोभित कर रही थी। वृक्षों की सुंदरता देखते ही बन रही थी।
झील, झरने नदिया, तलाब सभी ख़ुशियों से झूम रहे थे।
पक्षियों के झुंड अपने-अपने घोंसले से निकलकर प्रकृति की गोद में खेल रहे थे।
कभी पेड़ो की फुंगियो पर तो कभी घासो पर विचर रहे थे। और घासों पर पड़ी ओस की बूँद को अपने में लपेट रहे थे। दूर-दूर आसमान में उड़ने के लिए वह तत्पर थे, ऐसे लग रहा था कि, वह अपने नन्हे-नन्हे बच्चों को भी अपने साथ में लेकर उड़ना चाह रही हैं, उन्हें भी दुनिया की सैर करना चाह रही है।
पर्वत, पठारों और मैदानों में दाना चुनने के लिए उनको भी ले जाना चाह रहे हो। वह थोड़ी-थोड़ी उड़ान भरकर उन्हें भी कहीं डालियों से डालियों पर तो कभी डालियों से नीचे उड़ना सीखा रहे थे।
और वह नन्हे-नन्हे पैरों वाले बच्चे अपने से बड़ों के नक्श-ए-क़दम पर चल रहे थे। ऐसे लग रहा था कि, उनको सब कुछ पहले से ही पता हो वह फुदक-फुदक कर दाना की खोज कर रहे थे।
थोड़ी सी आहट आने पर वह ख़ुद को इस तरह से सिकोड़ ले रहे थे जैसे उनकी सुरक्षा कवच ईश्वर ने उनमें ही अर्जित कर दी हो।
उनको देखकर लगता था कि उनका जीवन ख़ुशियों से पूरी तरह भरा हुआ है।
सुबह-सुबह वह अपनी माँ के साथ उछलते कूदते और भूमि पर टहलते और जब सभी बड़ी चिड़िया दाना चुनने के लिए दूर तक निकल जाती तो वह ना ही धरती पर उछलती-कूदती और ना ही पेड़ों की टहनियों पर, वह अपने-अपने घोंसले में बैठकर उनके लौट के आने का इंतज़ार करती। जैसे मानो उनको सिखाया गया हो कि जब तक वह उसमें रहेगी तभी तक सुरक्षित रहेगी।
प्रतिदिन सभी चिड़िया दूर-दूर तक आसमान में उड़ती और अपने नन्हे-नन्हे बच्चों के लिए दाना चुनकर लाती, उनको खिलाती। और ना रहने पर उनको खाने के लिए कुछ दाने इकट्ठा करके घोंसले में भी रखती थी। शाम होने पर सूरज ढलने से पहले वह ची-ची की आवाज़ करते हुए अपने-अपने घोंसले में आ जाती थी, और सभी अपने नन्हे-नन्हे बच्चों के साथ सुख पूर्वक रहती थी। फिर सुबह होते ही उनको पेड़ों से टहनियाँ और टहनियों से धरातल पर उड़ना सिखाती।

ऐसे करते काफ़ी दिन बीत गए। वह सभी नन्ही चिड़ियाँ बड़ी हो गई और वे ऊँची उड़ाने भरने लगी, कभी आसमान की ऊँचाई तो कभी धरातल के निकट वे सदैव उड़ने लगी।
अब उनको किसी सहारे की ज़रूरत नहीं थी अब वह बिल्कुल स्वच्छंद थी। अपने झुंड में स्वतंत्रता पूर्वक उड़ सकती थी।
वह प्रतिदिन रैन बसेरा के लिए अपने घोंसले में आती और प्रातः होते ही अपने भोजन की तलाश में निकल जाती थी।
रोज़-रोज़ यह सुरम्य दृश्य देखने में अच्छा लगता था।
कुछ वक्त बीत गया एक दिन ऐसा हुआ कि वह चिड़िया हमेशा के लिए कहीं चली गई।
किसी दूर देश में जाकर रहने लगी या अपना रास्ता भटक गई, वह वापस लौटकर नहीं आई। उनका वह घोंसला जहाँ कभी हमेशा ची-ची की आवाज़ आती रहती थी, उनका उछलना-कूदना अच्छा लगता था।
वहीं अब बिल्कुल सूना-सूना-सा लग रहा था। जैसे कोई क़ीमती चीज़ खो गई हो।
ऐसे वह देखा नहीं जा रहा था। देखते-देखते काफ़ी दिन बीत गए। धान भी मुरझा गए लेकिन वह वापस लौटकर नहीं आई।
एक दिन बादल छाए हुए थे तेज़ बारिश और तूफ़ान के साथ गरज-तड़क हो रही थी।
पेड़ की डाली और शाखाएँ सब टूट कर ज़मीन पर गिर रही थी, लेकिन उनका बनाया हुआ वह घोंसला इतना मज़बूत था, जो शायद उसने आँधी तूफ़ान को भी पराजित करने को ठान लिया था। वह वैसे ही बना रहा, बिल्कुल अपनी जगह से हिला तक भी नहीं, मानो वह भी इंतज़ार कर रहा था और अकेले अपने अकेलेपन से लड़ रहा था।
उसको शायद एक पिंजरा की तरह उस जीव का इंतज़ार था, जो उसमें रहकर उसको सुशोभित कर रही थी।
और अंत में हुआ वही आँधी तूफ़ान और बारिश सब ख़त्म हो गई, और वह स्थिर अपनी जगह पर वैसे ही बना रहा। शायद अब उसका इंतज़ार ख़त्म हो चुका था।
जैसे ही शाम हुआ अचानक बादलों में चिड़ियों का वही झुंड ची-ची की आवाज़ करता हुआ आता दिखाई दिया।
ऐसे लग रहा था, वह भी बेताब थी अपने आशियानों में वापस आने के लिए।
वह आकर अपने इस घोंसले में बैठ गई, रात बीत गई सुबह हुई चिड़िया अपने घोंसले से बाहर नहीं निकली, वह उसी में पड़ी रही शायद उसे वही डर सता रहा था कि दूर जाकर कहीं हम अपना रास्ता ना भटक जाए।
अपने घोंसले में वह चैन की नींद ले रही थी, देखने में सिर्फ़ यही लग रहा था ।
जब दो-चार दिन बीत गए, फिर वही सन्नाटा उस घोसले में छा गया, और जो घोंसला उस आँधी और तूफ़ान से नहीं टूटा था, वो घोंसला उस दर्द से टूट गया। चिड़ियाँ की मृत्यु उसे तोड़ दी।
वो पेड़ों की टहनियों से टूटकर ज़मीन पर गिर पड़ा। और उस चिड़िया की मृत्यु के साथ उस घोंसले की भी मृत्यु हो गई।

डॉ॰ सुनीता सिंह - बस्ती (उत्तर प्रदेश)

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