निर्मल श्रीवास्तव - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
इश्क़ का गाँव - कविता - निर्मल श्रीवास्तव
शनिवार, मई 31, 2025
इश्क़ का गाँव बना के
हमको भी वहीं बसा दो
कितनो को तुमने बनाया
मेरे लिए इक ना बनाया
मेरे ख़ातिर कोई
बता दो
थोड़े बाग़ों को लगा के
थोड़ा फूलों को जगह दो
थोड़ा पानी थोड़े बादल
थोड़ी गायें थोड़ा काजल
खेतों में धान अच्छे परिधान
थोड़ी चर्चा थोड़ा ख़र्चा
हो जहाँ पर
हमको भी वहीं जगह दो
इश्क़ का गाँव बना के
हमको भी वहीं बसा दो
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