मौसम है हर साल बदलते रहता है - ग़ज़ल - हरीश पटेल 'हर'
रविवार, नवंबर 10, 2024
मौसम है हर साल बदलते रहता है,
जैसे कपटी चाल बदलते रहता है।
एक तरह से कब जीवन संगीत बजा,
हर पल यह लय ताल बदलते रहता है।
गिर जाएगा टूट, सूखकर डाली भी,
इसलिए पंछी डाल बदलते रहता है।
पाकर वे अनमोल रतन सब भूल गए,
समय सभी का हाल बदलते रहता है।
एक स्वाद का कब तक खाएँगे मित्रों,
नेता रोटी-दाल बदलते रहता है।
चमचे का अब क्या कहना इस धरती में,
गिरगिट-सा वह खाल बदलते रहता है।
सिर्फ़ कहानी सुना रहे सब विक्रम को,
क्षण क्षण में बेताल, बदलते रहता है।
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