तूलिका ने कहा ना लिखूँगी प्रणय - कविता - राघवेंद्र सिंह

तूलिका ने कहा ना लिखूँगी प्रणय - कविता - राघवेंद्र सिंह | Hindi Kavita - Tulika Ne Kaha Naa Likhoongi Pranay. प्रेम पर कविता
तूलिका ने कहा ना लिखूँगी प्रणय,
इस प्रणय का समापन तो वैराग्य है।

इस प्रणय में बँधे कृष्ण थे राधिका,
अंततः राधिका को मिली सिसकियाँ।
वेदना अरु रुदन, त्रास उनको मिला,
इस प्रतीक्षा में केवल मिली हिचकियाँ॥

यदि मिलें फिर कभी कृष्ण से राधिका,
तो मेरी तूलिका का यह सौभाग्य है।
तूलिका ने कहा ना लिखूँगी प्रणय,
इस प्रणय का समापन तो वैराग्य है॥

इस प्रणय में बँधे वो लखन-उर्मिला,
अंततः वन के वासी हुए वो लखन।
ना अधर खुल सके ना मिली एक झलक,
अश्रुओं की विदाई में निष्फल नयन॥

यदि मिले फिर लखन-उर्मिला से कभी,
तो मेरी तूलिका का यह सौभाग्य है।
तूलिका ने कहा ना लिखूँगी प्रणय,
इस प्रणय का समापन तो वैराग्य है॥

इस प्रणय में बँधा कृष्ण-मीरा का मन,
हो प्रणय में मगन कृष्ण को अपना लिया।
त्याग कर राजमहलों का सुख ही सदा,
अंततः हो विवश, पान विष का किया॥

यदि मिली मीरा माँ कृष्ण से फिर कभी,
तो मेरी तूलिका का यह सौभाग्य है।
तूलिका ने कहा ना लिखूँगी प्रणय,
इस प्रणय का समापन तो वैराग्य है॥


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