रजनीश तिवारी 'अनपढ़ माशूक़' - रीवा (मध्यप्रदेश)
हे धन लक्ष्मी मेरे घर आओ - कविता - रजनीश तिवारी 'अनपढ़ माशूक़'
सोमवार, अक्टूबर 28, 2024
हे धन लक्ष्मी मेरे घर आओ
हम दुखियों का कष्ट मिटाओ
भव सागर से पार लगाओ
दर्शन दो माँ दरश दिखाओ
दर्शन दो मुझे दरश दिखाओ
हे महालक्ष्मी मेरे घर आओ...
इष्ट हमारी आराध्य तुम्हीं हो
करुणानिधि दीनदयाल तुम्हीं हो
भक्तों की इक आस तुम्हीं हो
जग की इक विश्वास तुम्हीं हो,
हे धन लक्ष्मी मेरे घर आओ...
हे कृपासिंधु हरि प्राण प्रिये
हम सेवक हैं दास तुम्हारे
तुम जननी हो मात हमारे
दया दृष्टि ज़रा हम पर डालो,
हे धन लक्ष्मी मेरे घर आओ...
हे मन को मोहित करने वाली
मोहिनी रूप ले छलने वाली
भ्रम ये माया मोह मिटाओ
अपना चतुर्भुज रूप दिखाओ
अपना दिव्य स्वरूप दिखाओ,
हे धन लक्ष्मी मेरे घर आओ...
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