डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)
दीपोत्सव - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'
गुरुवार, अक्टूबर 31, 2024
अमावस की काली रात में सबने दीपमालाएँ सजाई, आई दीपावली आई।
राजा-राम के स्वागत की घड़ी आई, माता-लक्ष्मी सुख-समृद्धि भर लाई।
धारण कर नए-नए परिधान, स्वादिष्ट व्यंजन संग सबने ख़ुशियाँ मनाई।
सजा घर-द्वार रंगोली संग स्नेह-सम्मान की वर्षा ने निराशा दूर भगाई।
अज्ञानता रूपी अंधकार का तिमिर हरने दीप-ज्योति ने रोशनी फैलाई।
कर निजी स्वार्थ का त्याग परमार्थ-भावना के लिए हमने गुहार लगाई।
दीप भी वही हैं दीपमालाएँ भी वही हैं, यहाँ पर सब कुछ दिया दिखाई।
किन्तु इस दीपावली पर माँ का दुलार और बहन का प्यार नहीं ले पाई।
दीप से रोशन दिशाओं में खोजती निगाहें माँ और बहन को ढूँढ़ न पाई।
बिन माँ और बहन के दीपावली की ख़ुशियाँ मेरे मन को रास न आई।
अंतर्मन से आशीर्वाद मिले और किसी को अपनों की सहना पड़े न जुदाई।
एक साथ दो-दो आघात को सहकर भी दुनिया की सारी रीत मैंने निभाई।
दीपोत्सव के पावन-पर्व पर अपने स्वजनों को देने चली आई मैं बधाई।
सुख-समृद्धि और धन-वैभव का हो विस्तार ऐसी शुभकामनाएँ देने आई।
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