अतुल पाण्डेय 'बेतौल' - कानपुर (उत्तर प्रदेश)
मेरे गीतों में - गीत - अतुल पाण्डेय 'बेतौल'
सोमवार, अक्टूबर 21, 2024
मेरे गीतों में अक्सर दिखता है एक अक्स घूँघट में,
सब पूछते हैं मुझसे, जा उलझे हो किसकी लट में।
कौंधता है कोई मेरी स्याही में, हर्फ़ बन के रूपहला सा,
अहसास वो, जेठ के बाद, झोंका बारिश का पहला सा,
क़लम खींचती रही, ख़्यालों के मोती शब्दों में पिरोकर,
काग़ज़ों से आईं आवाज़ एक, बुला रही थी पनघट में।
मेरे गीतों में...
टकरा गई उजली तबीयत वाली, एक सूरत साँवली सी,
चाहे मुझे अपने आसपास, दूरी से डरती वो बावली सी,
उन आँखों में भरी चाहत, कई बार गीतों की इबारत बनी,
पढ़ी कई ग़ज़लों की बहर मैंने, धुँधली सी उस सूरत में।
मेरे गीतों में...
सुर्ख़ लब दिखे थे, खिलखिलाते मोगरे की लड़ियों संग,
सुरूर ही होता है मय में, हो चाहे उसका कोई भी रंग,
चाँदी की खनक हँसी में, काया में तांबई सी रंगत,
मीन सी आँखें कजरारी, बहुत बोलती हैं शरारत में।
मेरे गीतों में...
ज़ेहन में उसे सोंच कर, मैं जब जब गीत लिखता हूँ,
यक़ीं मानो, काग़ज़ों के संग संग, मैं भी महकता हूँ,
वो छू लेती है मुझे, नरम रेशमी अहसास बन कर,
अकेले भी हँसता हूँ, लिपट उसकी खिलखिलाहट में।
मेरे गीतों में...
हँसी में उसकी, पुराने ज़ख़्मों की, महक आती रही,
कई बातें दबी थीं, उसके भीतर, जो कभी न कही,
उसके वो दर्द, वो ख़ामोश कराहें, क़लम ने सोख लीं,
लिखता हूँ तो, वही उभर आती है मेरी लिखावट में।
मेरे गीतों में अक्सर दिखता है एक अक्स घूँघट में,
सब पूछते हैं मुझसे, जा उलझे हो किसकी लट में।
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