शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)
अथक परिश्रम - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
बुधवार, सितंबर 04, 2024
माता-पिता की आज्ञा
और उनका अनुसरण
पुत्र का अन्तिम धर्म,
दुःख, संघर्ष, अकिंचन जीवन
दीवार बन खड़े हो जाते हैं
किन्तु धैर्य से तोड़ो दीवार
और आगे बढ़ो
यौवन उत्पन्न करेगा
नकारात्मक विचार
फिर भी मत भूलो
माता-पिता का आदेश,
असफलता, असफलता, असफलता
और असफलता–
की दृढ़ प्राचीरों को लाँघ जाओ
और दूने उत्साह से
उठ खड़े हो लक्ष्य की प्राप्ति हेतु–
मत सुनो निंदक क्या कहते हैं?
एक दिन देखोगे
असफलताओं के पुंज
भस्मीभूत हो देंगे लक्ष्य
जिसकी तुमको चाहत थी
उसके भीतर छिपा है–
माता-पिता का आशीर्वाद
और तुम्हारी–
लगन
अथक परिश्रम।
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