विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)
नाग पंचशील - कविता - विनय विश्वा
शुक्रवार, अगस्त 09, 2024
किताबें चेतना पर पड़ी धूल को
चमका देती है,
अगर वह अपनी ऐतिहासिकता उपयोगिता में उपमेय है तो
क्योंकि रूपक वही हो सकता है
जिसका जीवंत रुपाकार हो।
वह जमी हुई परतों को परिष्कृत कर दे
किताबें ही है जो कई
रहस्य खोलती है
प्राचीन - अर्वाचीन को जोड़ती है
तभी तो मानव मस्तिष्क डोलती है
सदियों पहले बुद्धकालीन समय में वर्षावास मनाया जाता था जो आज भी बौद्धों की परंपरा में शामिल है
श्रावणी शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन नाग पंचशील उत्सव के रूप में
नाग जाती के राजा
जो अपनी नाग प्रजा के हित के लिए भगवान बुद्ध की सहायता हित
लोक में स्थापित हुए
जो वर्चस्व की राजनीति ने कूटनीति का दामन थाम थेरवाद को वर्णवाद में बदल डाला जो नाग पंचमी के रूप में स्थापित हुआ
लेकिन अब समय धार्मिक पुनर्जागरण का है जहाँ बौद्ध धर्म एक बार फिर अपने चरमोत्कर्ष पर होगा
जहाँ शांति होगी अहिंसा होगी
ब्रम्ह कमल खिलेगा
क्योंकि उत्थान का समय नज़दीक है।
वर्षावास से ही वर्ष बना जो वर्ष के रूप में समय के काम आया
बुद्ध के सच्चे वारिस–
तुम्हारा यह सच्चा धर्म और कर्तव्य है तुम एक बार फिर भारत को विश्व गुरु के शिखर पर ले जाओ
वह युग भी बौद्धकालीन था
और आज भी बुद्ध युगीन
कल रहे थे आज फिर उदीयमान होंगे धरा पर
अपनी विशिष्टता में।
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