आज़ादी का ये उपहार - कविता - राज कुमार कौंडल | स्वतंत्रता दिवस पर कविता

आज़ादी का ये उपहार - कविता - राज कुमार कौंडल | स्वतंत्रता दिवस पर कविता | Hindi Kavita - Aazadi Ka Ye Upahaar. Independence Day Poem
15 अगस्त 1947 का दिन था बहुत महान,
स्वधीनता की फ़िज़ा में गा रहा था हिन्दोस्तान।
सब भारतवासियों का पूरा हुआ अरमान,
यूनियन जैक हुआ गुम, तिरंगे ने छुआ आसमान।

उन वीरों की क़ुर्बानी को शत-शत प्रणाम,
देश के ख़ातिर दाँव पर लगादी अपनी जान।
चैनो अमन की फ़िज़ा नसीब हो सब को,
कर दिया हँसते-हँसते ख़ुद को देश पर क़ुर्बान।

अर्पित देश हित में जीवन अपना तमाम,
परतंत्रता की बेड़ियों का मिटाकर नामों निशान।
गर्व से‌‌ चुनी कभी गोली, कभी फाँसी का फंदा,
अपने‌ लहू से लिख दी‌ आज़ादी की दास्तान।

जवाँ लहू देकर मिली देश को इक नई पहचान,
कई घरौंदे हुए थे आज़ादी की जंग से वीरान।
सबने माना मान इसे, जो सदियों से थे ग़ुलाम,
मिटाकर ख़ुद को मातृभूमि का बढ़ा गए मान।

आज़ादी का ये उपहार है बड़ा दुर्लभ महान,
वीरों ने जो दी क़ुर्बानियाँ उनका करें सम्मान।
जो है जहाँ वहाँ ईमानदारी के छोड़े निशान,
ताकि उन्नति की इक नई गाथा लिखे हिन्दोस्तान।

राज कुमार कौंडल - बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)

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