कील - कविता - संजय राजभर 'समित'

कील - कविता - संजय राजभर 'समित' | Hindi Kavita - Keel - Sanjay Rajbhar Samit. कील पर कविता
कील ने कहा–
"हमारी प्रकृति है चुभना
और यह आप पर निर्भर है
मुझे कहाँ चुभाना चाहते हो
दीवार पर, दरवाज़े पर या आलमारी में
पर मैं हमेशा जोड़ता हूँ
मानव अपनी टीस को
नाहक कील की संज्ञा देता है।"


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