ख़ामोशी का आलम है
अपने अरमा कहाँ उतारे,
शब्द; कलम संग पन्नो पर
कविता की तस्वीर सँवारे।
शब्द आत्मा बने, पटल पर;
काया पन्ना हो जाए,
छंदों से शृंगार सृजित हो
अन्तर मन को जो भाए,
सब विपदाओं को हर ले
आती हैं जो बाँह पसारे।
शान्त सरल कौतूहल हो
कर्ण प्रिय स्वर बन जाए,
काम, कामिनी लज्जित हो
प्रतिबिम्ब दृग में यह छा जाए,
स्वपन लोक की परियों को
अपनी धरा पर आज उतारे।
ख़ामोशी का आलम है
अपने अरमा कहाँ उतारे
शब्द; कलम संग पन्नो पर
कविता की तस्वीर सँवारेI
लालता प्रसाद - काकोरी, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)